Feel The

Vastu Shastra

वास्तु शास्त्र

Vedictemplepuja की तरफ से अपने घर ,दुकान ,फैक्ट्री आदि का वास्तु निरख्यां के लिए हमारे वास्तु एक्सपर्ट्स उपलब्ध है |

आप ऑनलाइन के माध्यम से भी हमारे वास्तुबिद से सलाह ले सकते है .97739223978 पे कॉल करके आप जानकारी ले सकते है।

वास्तुशास्त्र प्राचीन भारत का एक बेशकीमती खजाना है |यह 5000 साल से भी ज्यादा समय से अस्तित्व में रहा बताया जाता है| इसकी उत्पत्ति बेदी से हुई और इसकी जड़ें वैदिक दर्शन से पाई जाती है| वास्तु के मतलब निवास करना है और वास्तु शास्त्र घर के निर्माण तथा उससे डिजाइन करने का पावन विज्ञान है| वास्तु का उद्देश्य घर और ब्रह्मांड के बीच सूक्ष्म रूपों के साथ संतुलन कायम करऩा है, जिससे लोगों को स्वास्थ्य, वैभव और खुशियां मिलती है| हम काफी समय पहले से जानते हैं कि स्वास्थ्य और खुशी भोजन या व्यायाम के जैसी चीजों पर पूरी तरह निर्भर नहीं करती | यदि मस्तिष्क अशांत रहता है तो पूरा शरीर असंतुलित होकर बीमारी से ग्रस्त हो जाता है| शरीर की ऊर्जा-माध्यम या नाडियाँ ब्रह्मांड के सूक्ष्म ऊर्जा ग्रहण करते हैं, जिसे प्राण कहां जाता है जिसे प्राण कहां जाता है| वास्तु यह सुनिश्चित करता है कि यदि प्राणघातक घर के भीतर सुचारू ढंग से काम कर रही हो ,तो यह अच्छी सेहत , वैभव और खुशियां प्रदान करती है| घर बनाने में इनके सही प्रयोग से कल्याणकारी वातावरण उत्पन्न होता है|

‘वास्तु’ शब्द का जन्म ‘वस्तु’ से हुआ है| ‘वस्तु’ अर्थात जो है, यानी जिसका अस्तित्व है| जो विद्यमान एवं प्रभावशाली है| वस्तुओं को मोट रूप से दो भाग में विभाजित किया जा सकता है| ईश्वर प्रदत वस्तुएं एवं मानव निर्मित वस्तुएं| मानव निर्मित वस्तुओं पर ‘वास्तु विज्ञान’ के सिद्धांत लागू होते हैं| मानव निर्मित समस्त चल व अचल संपत्तियाँ वास्तु शास्त्र से प्रभावित होती हैं| वास्तु का संबंध केवल भवन निर्माण से ही नहीं है , अपितु उस वस्तु से है, जिससे व्यक्ति द्वारा अपनी सुख-सुविधाओं के लिए तैयार किया जाता है | वास्तु शास्त्र वस्तुतः वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित है, जिसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव अधिक पड़ता है| भारत में सर्वप्रथम रुगवेद में वास्तु

भारत में सर्वप्रथम रुगवेद में वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों का उल्लेख मिलता है|

तत्पश्चात ब्राह्मण ग्रंथों , महाकाव्य , शुक्राचार्य , बृहस्पति , विश्वकर्मा द्वारा रचित ग्रंथों तथा कौटिल्य के अर्थशास्त्र व पुराणों में भी किसी ना किसी संदर्भ में वास्तुकला का उल्लेख किया गया है | विधिवत रूप से 11 वीं शताब्दी मैं महाराज भोजराज द्वारा ‘समरांगण सूत्रधार’ नामक ग्रंथ लिखा गया , जिससे वास्तु शास्त्र का प्रामाणिक ग्रंथ माना जा सकता है|

जिस प्रकार मानव शरीर- पृथ्वी ,वायु ,आकाश, जल व अग्नि- रूपी 5 भूतों से निर्मित है , उसी प्रकार विश्व की प्रत्येक वस्तु भी इन्ही पंच भूतों से निर्मित है | वास्तु शास्त्र भी इन्ही पंचतत्व के संतुलन पर आधारित है | जी स्थान पर मनुष्य वास करता है उसे ‘वस्तु’ यानी ‘वास्तु’ कहा जाता है तथा उससे संबंधित विज्ञान को ‘वास्तु शास्त्र’|वास्तुशास्त्र वस्तुतः कला भी है और विज्ञान भी| क्योंकि सभी कलाओं और विज्ञानों का जन्म शास्त्रों से ही हुआ है , इसीलिए ‘वास्तु -विद्या ‘ को भी ‘शास्त्र’ ही कहा गया किंतु आज यह ‘शास्त्र’ से अधिक ‘विज्ञान’ और शिल्प की दृष्टि से कला बन चुका है| हमारे यहां सभी कलाओं के मूल रूप से 64 वर्गों में बांटा गया है | जिनमें वास्तुकला भी एक है | मनुष्य इस सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है, इसीलिए उसका आवास भी सर्वश्रेष्ठ और निरापद होना चाहिए अतः पूर्वजों ने भवन निर्माण का धर्म के रूप में प्रदान किया |